उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में कैप्टन याशिका हटवाल त्यागी घर की दीवार पर लगे पुरस्कारों और स्मृति चिन्हों के बारे में फख्र के साथ बताती हैं. वे कारगिल जंग का हिस्सा थीं. पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान कैप्टन याशिका सेना आयुध कोर में थीं. वे अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिकों को गोला-बारूद, भोजन, कपड़े और जरूरत के दूसरे सामान उपलब्ध कराती थीं. खास बात थी कि वे ऐसे समय में युद्ध में हिस्सा ले रही थीं, जब गर्भवती थीं. देश की रक्षा में ना सिर्फ कैप्टन याशिका, उनके पति भी शामिल थे. पति की तैनाती द्रास में थी. याशिका के सामने एक मां के रूप में भी चुनौतियां थीं. उन्हें मुस्तैदी से ड्यूटी निभाते हुए अपने तीन साल के बेटे की भी देखभाल करनी थी. शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियां कई थीं. वे कहती हैं कि देश के लिए कर्तव्य निभाने का जज्बा तमाम चुनौतियों से ऊपर था. कारगिल युद्ध की दिग्गज का कहना है कि 1999 की जंग सेना में महिलाओं के लिए अहम मोड़ साबित हुई. युद्ध के दौरान महिलाओं की निभाई अहम भूमिका ने भविष्य में उन्हें नई जिम्मेदारियों का मौका दिया. कारगिल विजय दिवस पर कैप्टन याशिका हटवाल त्यागी का देश के नाम एक ही संदेश है - 'जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी'.